उत्तराखंड

जलियांवाला बाग की याद दिलाता है रामपुर तिराहा कांड, मानवता को शर्मसार करने वाली थी घटना

मुजफ्फरनगर : रामपुर तिराहा कांड में आंदोलनकारी महिला से सामूहिक दुष्कर्म के दोनों दोषियों को सजा सुनाए जाने के दौरान अपर जिला एवं सत्र न्यायाधीश शक्ति सिंह ने विशेष टिप्पणी की। उन्होंने कहा कि यह घटना जलियांवाला बाग कांड की याद दिलाती है। साथ ही अहिंसा के पुजारी राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की जयंती वाले दिन यह घटना पूर्णतयाः अप्रत्याशित, अकल्पनीय एवं मानवीय मर्यादाओं को तार-तार करने वाली है।

सजा के आदेश में एडीजे शक्ति सिंह ने कहा कि शांतिपूर्ण आंदोलन में नियमों के अधीन रहते हुए भाग लेना किसी भी व्यक्ति का मौलिक अधिकार है। उत्तराखंड की महिलाएं और पुरुष भी शांतिपूर्वक आंदोलन के लिए दिल्ली जा रहे थे। उन पर गोलियां चलाना और सामूहिक दुष्कर्म जैसी घटना को पुलिसकर्मियों द्वारा अंजाम देना बेहद पीड़ादायक है, क्योंकि पुलिस और पीएसी के कंधे पर ही आमजन की सुरक्षा होती है।

आदेश में कहा कि, महात्मा गांधी जो सत्य और अहिंसा के मार्ग पर चलने हेतु आम जन को प्रेरित करते थे, उनके द्वारा असंख्य आंदोलन देश को आजाद कराने के लिए किए गए। ऐसे महान विभूति की जयंती के दिन आंदोलन में भाग लेने जा रही महिला के साथ दुष्कर्म, छेड़छाड़ एवं लूट जैसा जघन्य अपराध पूरी मानवता को शर्मसार करने वाला है। ऐसा कृत्य करने वाले पीएसी के सिपाही मिलाप सिंह और वीरेंद्र प्रताप को कठोरतम दंड का भागी बना देता है।

कहा कि, जो घटना हुई थी, वह संपूर्ण जनमानस एवं इस न्यायालय की आत्मा को झकझोर देने वाली है तथा आजादी से पूर्व जलियांवाला बाग की घटना को याद दिलाने वाली है। आजादी से पहले जब आमजन शांतिपूर्ण तरीके से आंदोलन कर रहे थे, तब बेकसूर निहत्थे लोगों पर ताबड़तोड़ फायरिंग की घटना अंग्रेजी हुकूमत में की गई थी। आजादी के बाद रामपुर तिराहा जनपद मुजफ्फरनगर में जब आमजन आंदोलन करने हेतु देश की राजधानी दिल्ली जा रहे थे, तब पीड़ित महिला के साथ सामूहिक दुष्कर्म शर्मसार करने वाली घटना है।

दिखाई संवेदनशीलता, पीड़िता को दिलाई सुरक्षा

रामपुर तिराहा कांड में गवाहों की सुरक्षा को लेकर एडीजे शक्ति सिंह ने पुलिस महानिदेशक एवं मुख्य सचिव उत्तराखंड को आदेशित किया। पीड़िता को गवाही के लिए उत्तराखंड से मुजफ्फरनगर लाते समय दोनों राज्यों की पुलिस से समन्वय स्थापित कराया।

वहीं, उत्तराखंड संघर्ष समिति के अधिवक्ता अनुराग वर्मा ने बताया कि एक बार वृद्ध गवाह की तबीयत न्यायालय में खराब हो गई थी, तब न्यायाधीश ने न्यायालय परिसर में डाक्टर बुलवाकर प्राथमिक उपचार करवाया था। डीजीसी राजीव शर्मा ने बताया कि गवाहों को सुरक्षा का अहसास होने के चलते वह न्यायालय में गवाही देने आ सके। मुजफ्फरनगर की पुलिस उत्तराखंड बार्डर से ही गवाहों को पूरी सुरक्षा में लाती थी।

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