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देहरादून के बाद गाजियाबाद में बेटा बना राजू, 30 साल बाद लौटे युवक की कहानी सुलझाने में उलझी दो राज्यों की पुलिस

देहरादून : देहरादून के बाद गाजियाबाद में बेटा बनकर एक बुजुर्ग मां-बाप की भावनाओं से खेल रहे राजू ने अब पुलिस को भी उलझा दिया है। लंबी पूछताछ के बावजूद पुलिस उससे ऐसा कुछ भी नहीं जान सकी है, जिससे किसी नतीजे पर पहुंचा जा सके। राजू बार-बार खुद के तुलेराम का बेटा होने का दावा कर रहा है। ऐसे में अब पुलिस के सामने उसकी डीएनए जांच कराने का ही विकल्प बचा है। वहीं दोनों परिवार राजू की हकीकत सामने आने के बाद खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं। इधर, गाजियाबाद पुलिस ने स्थानीय पुलिस की मदद से देहरादून के बुजुर्ग दंपती से भी पूछताछ कर राजू के बारे में जानकारी जुटा रही है। इधर, देहरादून पुलिस ने भी एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग टीम को मामले की जांच सौंप दी है।

खोड़ा पुलिस के पास एक सप्ताह पहले पहुंचे राजू ने पुलिस को बताया था कि 30 वर्ष पहले एक ट्रक चालक उसका अपहरण कर राजस्थान ले गया था। वहां जैसलमेर के एक गांव में भेड़-बकरी चरवाते थे और खेतों में बनी झोपड़ी में पैरों में बेड़ियां बांधकर रखते थे। खाने को एक रोटी और चाय देते थे। बकरी या भेंड की मौत होने पर यातनाएं दी जाती थी। पिछले दिनों एक ट्रक चालक सरदार जी भेड़ खरीदने जैसलमेर गए तो बेडियों में बंधा देखकर ट्रक में डालकर दिल्ली ले आए और गाजियाबाद के लिए ट्रेन में बैठा दिया। यहां दो दिन भटकता रहा फिर 24 नवंबर को खोड़ा थाने पहुंचा।

पुलिस ने मीडिया में जानकारी दी तो शहीद नगर के तुलेराम पत्नी लीलावती और बेटियों साथ थाने पहुंचे। लीलावती ने राजू के सिर पर बचपन की चोट का निशान और सीन पर तिल देखा तो गले से लगाकर रोने लगीं। परिवार को लगा कि 30 साल पहले अपहृत हुआ बेटा मिल गया। उस समय आठ लाख की फिरौती मांगी गई थी। राजू ने भी बड़ी बहन को बचपन के नाम मोटी कहकर बुलाया तो परिवार का भरोसा और पुख्ता हो गया। हालांकि, पिता को शक था, लेकिन मां की ममता के आगे वह हार गए। उसके बचपन का नाम भीम सिंह था। प्यार से उसे राजू और पन्नू कहते थे। इधर, शनिवार को पुलिस को पता चला कि राजू देहरादून के पटेल नगर निवासी कपिल शर्मा के यहां भी चार माह तक उनका बेटा मोनू शर्मा बनकर रहा है। वहां भी उसने कहानी यही सुनाई थी, फर्क सिर्फ इतना था कि यहां वह 15 वर्ष पूर्व गायब हुआ मोनू बनकर रहा।

इसके बाद पुलिस ने राजू को हिरासत में लेकर पूछताछ कर मामले की नए सिरे से जांच शुरू कर दी है। जांच में पता चला है कि 21 नवंबर को वह दिल्ली में नौकरी मिलने की बात कहकर घर से निकला था। सहायक पुलिस आयुक्त, साहिबाबाद रजनीश उपाध्याय ने बताया कि राजू देहरादून में रहने की बात तो स्वीकार कर रहा है, लेकिन कुछ और नहीं बता रहा है।

पुलिस ने खंगाला आपराधिक इतिहास

पुलिस को जांच में पता चला कि देहरादून से कुछ दिन पूर्व वह दिल्ली में बेहतर नौकरी मिलने की बात कहकर आया था। इधर, पुलिस की सक्रियता बढ़ी तो शुक्रवार की रात उसने तुलेराम के घर से भी भागने का प्रयास किया था। ऐसे में पुलिस को शक है कि राजू के किसी ठग गिरोह से भी जुड़े होने की आशंका है। इसे देखते हुए पुलिस ने फोटो के जरिये उसका आपराधिक इतिहास खंगाला, लेकिन कुछ हाथ नहीं लगा। मोबाइल भी देहरादून मंडी में मिलने की बात सामने आ रही है। इससे अभी तक पुलिस यह भी तय नहीं कर पा रही है कि युवक का वास्तविक नाम क्या है, वह राजू है या मोनू या फिर किसी गिरोह का सदस्य है।

इन सवालों का जवाब ढूंढ रही पुलिस

  • तुले राम के मुताबिक उनका बेटा 30 साल पहले कक्षा एक में सरकारी स्कूल में पढ़ता था, जिसे ठीक से हिंदी लिखनी भी नहीं आती थी, लेकिन यह अंग्रेजी में नाम लिख रहा है। बोलचाल में भी अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग कर रहा है।
  • उसे कमरे के अंदर परिवार के साथ सुलाया गया। लेकिन वह छिपकर बार-बार मोबाइल चलाने का प्रयास क्यों कर रहा था।
  • परिवार ने बाहर जाने से मना किया तो फोन पर पुलिस से शिकायत की धमकी क्यों दे रहा था।
  • उसने बहन को तो पहचान लिया, लेकिन घर में रखी पिता की पुरानी साइकिल नहीं पहचान सका।
  • वह 30 वर्ष तक राजस्थान में रहा लेकिन राजस्थान की भाषा नहीं सीख सका।
  • गाजियाबाद के बजाय जब देहरादून पहुंचा तो वहां चार माह तक मोनू बनकर क्यों रहा। वहां पुलिस या शर्मा परिवार को सच्चाई क्यों नहीं बताई।
  • पैरों में बेड़ियों के निशान नहीं हैं, बेड़ियां डालकर कोई भेड़-बकरी कैसे चरा सकता है?
  • नोट नहीं पहचानता था तो देहरादून में मंडी में नौकरी करने के दौरान तनख्वाह कैसे लेता था

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