Kargil Vijay Diwas कारगिल की गौरव गाथा उत्तराखंड के बगैर अधूरी, सेना में हर 12वां अधिकारी उत्तराखंड से
Kargil Vijay Diwas कारगिल का नाम आते ही उत्तराखंड वासियों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। हो भी क्यों न कारगिल की गौरव गाथा उत्तराखंड के बगैर अधूरी है। 1999 में हुए कारगिल युद्ध में उत्तराखंड के 75 जाबांज जवानों ने सीमा पर देश के लिए अपनी शहादत दी थी।
देहरादून: उत्तराखंड का इतिहास वीरता और पराक्रम के असंख्य किस्से खुद में समेटे है। कारगिल की वीरगाथा उत्तराखंड के सपूतों के बिना अधूरी है। वर्ष 1999 में हुए कारगिल युद्ध में राज्य के 75 रणबांकुरों ने सर्वोच्च बलिदान दिया था। उत्तराखंड को वीरों की भूमि यूं ही नहीं कहा जाता। राज्य का सैन्य इतिहास वीरता और पराक्रम के असंख्य किस्से खुद में समेटे हुए है। उत्तराखंड के लोकगीतों में शूरवीरों की जिस वीर गाथाओं का जिक्र मिलता है, वे अब प्रदेश की सीमाओं में ही न सिमटकर देश-विदेश में फैल गई हैं। कारगिल युद्ध (Kargil War 1999) की वीरगाथा भी इस वीरभूमि के रणबांकुरों के बिना अधूरी है। ऐसा कोई पदक नहीं, जो सूबे के जांबाजों को न मिला हो। इनकी याद में जहां एक ओर सैकड़ों आखें नम होती हैं, वहीं राज्यवासियों का सीना भी गर्व से चौड़ा हो जाता है। देश की सुरक्षा और सम्मान के लिए देवभूमि के वीर सपूत हमेशा ही आगे रहे हैं। इन युवाओं में सेना में जाने का क्रेज आज भी बरकरार है। गढ़वाल राइफल्स के 47 जवानों ने अपना बलिदान दिया था।
सेना में हर 12वां अधिकारी उत्तराखंड से
यही कारण है कि आइएमए (IMA) से पासआउट होने वाला हर 12वां अधिकारी उत्तराखंड से है। वहीं भारतीय सेना का हर पांचवां जवान भी इसी वीरभूमि में जन्मा है। देश में जब भी कोई विपदा आई तो यहां के रणबांकुरे अपने फर्ज से पीछे नहीं हटे। वर्ष 1999 में हुए कारगिल लड़ाई (Kargil War) में भारतीय सेना (Indian Army) ने पड़ोसी मुल्क की सेना को चारों खाने चित कर विजय हासिल की। कारगिल योद्धाओं की बहादुरी का स्मरण करने व बलिदानियों को श्रद्धाजलि अर्पित करने के लिए 26 जुलाई को प्रतिवर्ष कारगिल विजय दिवस के रूप में मनाया जाता है।प्रदेश के सर्वाधिक सैनिकों ने कारगिल युद्ध में बलिदान दिया। एक छोटे राज्य के लिए यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। बलिदान का यह जज्बा आज भी पहाड़ भुला नहीं पाया है। गढ़वाल रेजीमेंटल सेंटर के परेड ग्राउंड पर हेलीकाप्टर से बलिदानियों के नौ शव एक साथ उतारे गए तो मानो पूरा पहाड़ अपने लाडलों की याद में रो पड़ा था। कारगिल आपरेशन में गढ़वाल राइफल्स के 47 जवानों ने बलिदान दिया था, जिनमें 41 उत्तराखंड मूल के ही थे। वहीं कुमाऊं रेजीमेंट के भी 16 जाबाज भी बलिदान हुए थे। डेढ़ दशक पूर्व इस आपरेशन में मोर्चे पर डटे योद्धाओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जवानों ने कारगिल, द्रास, मशकोह, बटालिक जैसी दुर्गम घाटी में दुश्मन से जमकर लोहा लिया। युद्ध में वीरता प्रदर्शित करने पर मिलने वाले वीरता पदक इसी की बानगी है।