पर्यटन

गिरगिट की तरह रंग बदलती है यह झील, इस झील की मछलियों का भी नहीं बढ़ता आकार

देहरादून: झिलमिलताल झील की कहानी भी कम रोचक नहीं है। यह झील पूरे दिन में गिरगिट की तरह रंग बदलती है। कहा जाता है कि इस झील की मछलियों का आकार भी एक समान ही रहता है। टनकपुर से सटी नेपाल की ब्रहमदेव मंडी से करीब आठ किमी दूूर स्थित 6800 वर्ग मीटर में फैली सिद्देश्वर झिलमिलताल झील का गहरा धार्मिक महत्व है।

मान्यता है कि यह झील दिन भर में सात बार रंग बदलती है। श्रद्धालु  व पर्यटक झील में पत्थर चट्टा प्रजाति की मछलियों को चावल खिलाकर पुण्य कमाते हैं। मंदिर के पुजारी रमानंद गिरि के अनुसार मान्यता है कि मां पूर्णागिरि इसी पावन झील में स्नान किया करती थी। झील के किनारे मां झिलमिल का मंदिर बना है, जहां पूजा-अर्चना करने से हर मन्नत पूरी होती है। कुछ लोग इस झील को पांडवों की उत्पत्ति भी मानते हैं। कहा जाता है कि पांडवों ने यहां विश्राम के दौरान प्यास बुझाने को इस झील की उत्पत्ति की थी। झील के ऊपर की पहाड़ी में भीम ने बड़े से पत्थर में घुटना मारकर पानी का स्रोत पैदा किया।

यह पत्थर आज भी वहां मौजूद है। झील में पत्थर चट्टा प्रजाति की मछलियां खासी तादात में हैं। इनको मारने पर पूरी तरह से प्रतिबंध है, यह भी मान्यता है कि झील में मौजूद मछलियों का आकार एक समान रहता है। झील में स्नान करना पूर्णरूप से प्रतिबंधित है। खासतौर पर महिलाएं झील से पानी नहीं भर सकतीं हैं। कहा जाता है कि इसके बगल में भी पहले एक और झील थी, जिसमें भूलवश एक महिला के स्नान करने के कारण वह सूख गई।  हर माह की पूर्णमासी को बड़ी संख्या में श्रद्धालु उमड़ते हैं। आस-पास के लोगों के साथ ही भारतीय क्षेत्र से भी बड़ी संख्या में लोग झील के दर्शन को पहुंचते हैं। नेपाल सरकार ने धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए अब ब्रह्मदेव मंडी से आठ किमी पर सात किमी सड़क बना दी है। इससे आगे एक किमी का पहाड़ का सफर पैदल पगडंडी के सहारे पूरा किया जाता है  पिछले कुछ सालों से पूर्णागिरी मेले के दौरान झील को देखने के लिए पर्यटक व श्रद्धालुओं के पहुंचने से इस क्षेत्र में काफी चहल पहल हो रही है। यह झील अब नेपाल के सीमांत क्षेत्र के विकास में भी अहम भूमिका निभाने लगी है।

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