Mahashivratri 2024: आज देशभर में महाशिवरात्रि बड़े ही धूम-धाम से साथ मनाई जा रही है। महाशिवरात्रि का पावन पर्व परम सिद्धिदायक भगवान भोलेनाथ की पूजा-अर्चना के लिए समर्पित है। शिवभक्त इस दिन भोलेनाथ की उपासना कर उनका आशीर्वाद ग्रहण करते हैं। भोलेनाथ को प्रसन्न करने के लिए हम दूध, दही, शहद, घी, भांग, धतूरा, पुष्प, फल और बेलपत्र आदि चीजें अर्पित करते हैं। लेकिन शास्त्रों में बेलपत्र अर्पित करने का बहुत महत्व बताया गया है। शिवपुराण के अनुसार एक लाख बेलपत्र शिवलिंग पर चढ़ाने से मनुष्य अपनी सारी काम्य वस्तुएं को प्राप्त कर लेता है। आइए जानते हैं बेलवृक्ष की महिमा और इसको चढ़ाने के नियम।
बिल्ववृक्ष की महिमा
शिवपुराण के अनुसार बिल्ववृक्ष शिवजी का ही रूप है। देवताओं ने भी इस शिवस्वरूप वृक्ष की स्तुति की है। तीनों लोकों में जितने पुण्य-तीर्थ प्रसिद्ध हैं, वे सम्पूर्ण तीर्थ बिल्व के मूलभाग में निवास करते हैं। जो पुण्यात्मा मनुष्य बिल्व के मूलभाग में लिंगस्वरूप अविनाशी महादेवजी का पूजन करता है, वह निश्चय ही शिवपद को प्राप्त होता है।
शिवपुराण के अनुसार तीनों लोकों में जितने पुण्य तीर्थ प्रसिद्ध हैं, वे सम्पूर्ण तीर्थ बिल्व के मूल भाग में निवास करते हैं। जो मनुष्य बिल्व के मूल में लिंगस्वरूप अविनाशी महादेव का पूजन करता है,व ह निश्चय ही शिवपद को प्राप्त होता है। जो बिल्व की जड़ के पास जल से अपने मस्तक को सींचता है वह सम्पूर्ण तीर्थों में स्नान का फल पा लेता है और वही प्राणी इस भूतल पर पावन माना जाता है। जो मनुष्य गंध, पुष्प आदि से बिल्व के मूलभाग का पूजन करता है, वह शिवलोक को पाता है बिल्व की जड़ के समीप आदरपूर्वक दीप जलाकर रखता है ,वह तत्वज्ञान से सम्पन्न हो भगवान महेश्वर में मिल जाता है। जो बिल्व की शाखा थामकर हाथ से उसके नए-नए पल्लव उतारता और उनको शिवलिंग पर अर्पित करता है, वह सब पापों से मुक्त हो जाता है।
जो बिल्व की जड़ के समीप भगवान शिव के भक्त को श्रद्धा पूर्वक भोजन कराता है,उसे कोटिगुना पुण्य की प्राप्ति होती है। जो बिल्व की जड़ के पास शिवभक्त को खीर और घृतयुक्त भोजन देता है, वह कभी दरिद्र नहीं होता है। भगवान शिव जी को परम प्रिय बिल्ववृक्ष जिस किसी के घर में होता वहां धन संपदा की देवी लक्ष्मी पीढ़ियों तक निवास करती हैं।
शिवजी को इसलिए चढ़ाया जाता है बेल पत्र
पुराणों के अनुसार समुद्र मंथन के समय जब कालकूट नाम का विष निकला तो इसके प्रभाव से सभी देवता और जीव-जंतु व्याकुल होने लगे। सारी सृष्टि में हाहाकार मच गया। संपूर्ण सृष्टि की रक्षा के लिए देवताओं और असुरों ने भगवान शिव से प्रार्थना की। तब भोलेनाथ ने इस विष को अपनी हथेली पर रखकर पी लिया।
विष के प्रभाव से स्वयं को बचाने के लिए उन्होंने इसे अपने कंठ में ही रख लिया। जिस कारण शिवजी का कंठ नीला पड़ गया, इसलिए महादेवजी को ‘नीलकंठ’ कहा जाने लगा। लेकिन विष की तीव्र ज्वाला से भोलेनाथ का मस्तिष्क गरम हो गया। ऐसे समय में देवताओं ने शिवजी के मस्तिष्क की गरमी कम करने के लिए उन पर जल उड़ेलना शुरू कर दिया और ठंडी तासीर होने की वजह से बेलपत्र भी चढ़ाए । इसलिए बेलपत्र और जल से पूजा करने वाले भक्त पर भगवान आशुतोष अपनी कृपा बरसाते हैं। साथ ही यह भी माना जाता है कि बेलपत्र को शिवजी को चढ़ाने से दरिद्रता दूर होती है और व्यक्ति सौभाग्यशाली बनता है।
बेलपत्र अर्पण करने में इन बातों का रखें ध्यान
- भगवान शिव को एक साथ जुड़ी हुई तीन पत्तियों वाली बेलपत्र ही चढ़ाना चाहिए।
- भगवान शिव को बेलपत्र अर्पित करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि इसकी पत्तियां कहीं से भी कटी-फटी न हो या फिर उसमें कहीं छेद न हो।
- बेल पत्र को कभी भी बासी नहीं माना जाता है। शिवजी को चढ़ाए गए बेल पत्र को दोबारा धोकर फिर से चढ़ाया जा सकता है।
- भगवान शिव को हमेशा उल्टा बेलपत्र यानी चिकनी सतह की तरफ वाला भाग स्पर्श कराते हुए ही बेलपत्र चढ़ाएं।
- बेलपत्र को हमेशा अनामिका, अंगूठे और मध्यमा अंगुली की मदद से चढ़ाएं और मध्य वाली पत्ती को पकड़कर शिवजी को अर्पित करें।
- शिव जी को कभी भी सिर्फ बिल्वपत्र अर्पण नहीं करें, बेलपत्र के साथ जल की धारा जरूर चढ़ाएं।