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कृषि मंत्री गणेश जोशी की बढ़ सकती हैं मुश्किलें, विजिलेंस कोर्ट को मंत्री परिषद के निर्णय का इंतजार

देहरादूनः आय से अधिक संपत्ति के आरोपों में घिरे कृषि मंत्री गणेश जोशी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं। विजिलेंस कोर्ट उनके विरुद्ध भ्रष्टाचार के आरोप में मुकदमा दर्ज करने का आदेश पारित कर सकती है। फिलहाल, यह गेंद उत्तराखंड की मंत्री परिषद के पाले में है। क्योंकि, न्यायालय विशेष न्यायाधीश सतर्कता/प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के आलोक में मंत्री परिषद के पास लंबित प्रकरण के मामले में 03 माह की अवधि तक इंतजार करने का निर्णय लिया है। यह अवधि 08 अक्टूबर को समाप्त होगी। लिहाजा, कोर्ट ने मामले में 19 अक्टूबर की तिथि तय कर दी है।

अधिवक्ता विकेश नेगी ने कृषि मंत्री गणेश जोशी पर भ्रष्टाचार कर आय से अधिक संपत्ति अर्जित करने का आरोप लगाया था। जिसमें उन्होंने कहा था कि काबीना मंत्री जोशी ने विधायक और मंत्री के वेतन के रूप में वर्ष 2007 से लेकर 2023 तक 36 लाख 54 हजार रुपये प्राप्त किए, जबकि वर्ष 2022 में भारत निर्वाचन आयोग के समक्ष दाखिल किए गए हलफनामे में उन्होंने अपनी संपत्ति 09 करोड़ रुपये बताई है। साथ ही उन्होंने इस दौरान गणेश जोशी और उनके परिजनों/साझेदार की ओर से क्रय-विक्रय की गई संपत्ति का विवरण भी सामने रखा।

यह आरोप लगाने के साथ ही उन्होंने काबीना मंत्री के विरुद्ध मुकदमा दर्ज करने को लेकर विजिलेंस को शिकायत दी थी। इस पर लंबे समय तक कार्यवाही न किए जाने के चलते उन्होंने 156(3) के तहत विजिलेंस कोर्ट में प्रार्थना पत्र दाखिल किया। ताकि कोर्ट के माध्यम से मुकदमा कायम किया जा सके।

प्रकरण पर सुनवाई करते हुए न्यायालय विशेष न्यायाधीश सतर्कता/प्रथम अपर सत्र न्यायाधीश मनीष मिश्रा ने एसपी विजिलेंस की आख्या पर गौर किया। जिसके मुताबिक उन्होंने शासन से अनुमति मांगी थी। कोर्ट में समक्ष यह जानकारी दी गई कि शासन के कार्मिक और सतर्कता विभाग ने मुदकमा दर्ज करने के अनुमति के आवेदन को मंत्री परिषद (गोपन) सचिव को भेजा है। मंत्री परिषद इस मामले में उचित परीक्षण के बाद कार्यवाही के लिए कार्मिक विभाग को निर्देशित करेगी।

कोर्ट ने पाया कि चूंकि कार्यपालिका के निर्णय लेने के लिए मंत्री परिषद सर्वोच्च संस्था है। ऐसे में किसी लोक सेवक के संबंध में निर्णय करने के लिए मामला सर्वोच्च संस्था के समक्ष विचाराधीन हो तो निर्धारित समय से पूर्व किसी न्यायालय का कोई आदेश पारित करना न्याय संगत नहीं होता है। यह भी सही है कि प्रकरण भ्रष्टाचार से संबंधित है, लेकिन ऐसे मामलों में भी सप्रीम कोर्ट के स्पष्ट आदेश पारित किया है। विजिलेंस कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के डॉ सुब्रमण्यम स्वामी बनाम डॉ मनमोहन सिंह व अन्य में दिए गए निर्णय का जिक्र किया। जिसमें ऐसे मामलों में अभियोजन की स्वीकृति के लिए 03 माह की अवधि नियत की गई है।

कोर्ट ने पाया कि अभियोजन की स्वीकृति के लिए मंत्री परिषद को पत्र 08 जुलाई को भेजा गया था। लिहाजा, इसके अनुरूप 03 माह की अवधि 08 अक्टूबर पाई गई। ऐसे में प्रकरण में 08 अक्टूबर के बाद ही सुनवाई को न्यायसंगत माना गया। कोर्ट ने कहा कि मामले के तथ्यों और मंत्री परिषद के पास निहित विवेकाधार को देखते हुए 19 अक्टूबर की तिथि सुनवाई के लिए तय की जाती है। आदेश की प्रति सचिव मंत्री परिषद को भी भेजी गई। कोर्ट ने सचिव मंत्री परिषद से अनुरोध किया कि वह परिषद के निर्णय से न्यायालय को भी अवगत कराएं।

कैबिनेट मंत्री गणेश जोशी ने कहा कि आय से अधिक संपत्ति को लेकर लगाए गए आरोपों पर अब शासन को ही जवाब देना है। पूरी संपत्ति की जानकारी शासन को भेजी गई है। जब भी कोई प्रत्याशी चुनाव लड़ता है तो आय-व्यय की पूरी जानकारी देनी होती है। इसमें कुछ छिपा नहीं है और कोई गड़बड़ भी नहीं है। शासन को पता है कि इस मामले में क्या निर्णय लिया जाना चाहिए।

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