High court Nainital: जोशीमठ भू-धंसाव मामले में हाई कोर्ट को क्यों करनी पड़ी सख्त टिप्पणी
नैनीताल : हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने चमोली जिले के जोशीमठ में लगातार हो रहे भू-धंसाव की रोकथाम को लेकर दायर जनहिता याचिका पर शुक्रवार को सुनवाई की। मामले में गंभीरता नहीं दिखाने पर मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से तलब कर लिया। वहीं, कहा कि सरकार जनता की समस्या को नजरअंदाज कर रही है। प्रभावितों के पुनर्वास के लिए रणनीति तैयार नहीं की गयी है। किसी भी समय जोशीमठ का संबंधित क्षेत्र तबाह हो सकता है। प्रशासन ने करीब ऐसे 600 भवनों की चिह्नित किया है, जिनमें दरारें आयी हैं। ये दरारें रोजाना बढ़ती ही जा रही हैं। मामले की अगली सुनवाई 22 सितंबर को होगी।
तो इसलिए सख्त हुआ हाई कोर्ट
जनवरी 2023 को कोर्ट ने दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए जांच के लिए स्वतंत्र विशेषज्ञ सदस्यों की कमेटी गठित करने के लिए कहा था, जिसमें आपदा प्रबंधन के अधिशासी निदेशक पीयूष रौतेला और एमपीएस बिष्ट को शामिल किया जाना था। लेकिन सरकार ने अब तक न कमेटी गठित की और न ही किसी विशेषज्ञ से सलाह ही ली। इसे हाई कोर्ट ने गंभीर लापरवाही मानते हुए तल्ख टिप्पणी करते हुए मुख्य सचिव को व्यक्तिगत रूप से तलब कर लिया।
अल्मोड़ा निवासी पीसी तिवारी ने दायर की है जनहित याचिका
मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति विपिन सांघी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ में अल्मोड़ा के पीसी तिवारी ने 2021 में जनहित याचिका दायर की है। उन्होंने कहा है कि 1976 में मिश्रा कमेटी ने जोशीमठ को लेकर विस्तृत रिपोर्ट सरकार को दी थी, जिसमें कहा गया था कि जोशीमठ शहर मिट्टी, रेत व कंकर से बना है। वहां कोई मजबूत चट्टान नहीं है। ऐसे में कभी भी भू-धंसाव हो सकता है। निर्माण कार्य से पहले जांच आवश्यक है। जोशीमठ के लोगों को जंगल पर निर्भर नहीं होना चाहिए। उन्हें वैकल्पिक ऊर्जा के साधनों की व्यवस्था भी करनी चाहिए। 25 नवंबर 2010 को पीयूष रौतेला व एमपीएस बिष्ट ने एक शोध जारी कर कहा था कि सेलंग के पास एनटीपीसी टनल का निर्माण कर रही है, जो अति संवेदनशील क्षेत्र है। टनल बनाते वक्त पानी का मार्ग अवरुद्ध हो गया और 700 से 800 लीटर प्रति सेकेंड के हिसाब से पानी बहने लगा। इस पानी से प्रतिदिन दो से तीन लाख लोगों की प्यास बुझाई जा सकती है। पानी की सतह पर बहने के कारण निचली भूमि खाली हो जाएगी। इसलिए इस क्षेत्र में भारी निर्माण कार्य बिना सर्वे के न किया जाय।
आपदा से निपटने की तैयारी अधूरी
तिवारी ने अपनी याचिका में कहा है कि राज्य सरकार के पास आपदा से निपटने की तैयारी अधूरी है। सरकार के पास अब तक कोई ऐसा सिस्टम नहीं है, जो आपदा आने से पहले सूचना दे। उत्तराखंड में 5600 मीटर की ऊंचाई वाले क्षेत्रों में मौसम का पूर्वानुमान लगाने वाले यंत्र तक नहीं हैं। ऊंचाई वाले क्षेत्रों में रिमोट सेंसिंग इंस्टीट्यूट अभी तक काम नहीं कर रहा है। इससे बादल फटने जैसी घटनाओं की जानकारी नहीं मिल पाती। हाइड्रो प्रोजेक्ट टीम के कर्मचारियों की सुरक्षा के भी इंतजाम नहीं हैं। कर्मचारियों को सुरक्षा के नाम पर बस हेलमेट दिया गया है।