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देहरादून: मक्की यानी भुट्टे ने एक गांव को पर्यटन मानचित्र में जगह दिला दी है। कुछ अजीब सी लगने वाली यह बात उत्तराखंड का सच है। उत्तराखंड के टिहरी जनपद में मशहूर पर्यटन स्थल कैंपटी फाल से कुछ दूरी पर स्थित एक गांव महज मक्की सहेजने के अनोखे अंदाज की वजह से पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। इस गांव की पहचान लोग कार्न विलेज आफ इंडिया के नाम से है।
हर रोज काफी सैलानी भुट्टों से सजे घर और गांव देखने पहुंचते हैं। उनके लिए यह एक बिल्कुल अलग तरह का अनुभव होता है। कुछ साल पहले तक टिहरी के जौनपुर ब्लाक के छोटे से गांव सैंजी को बहुत कम लोग जानते थे, लेकिन अब यह गांव मसूरी और कैंपटी फाल आने वाले पर्यटकों के लिए आकर्षण का एक नया केंद्र बन गया है।
ये जानना बहुत दिलचस्प होगा कि पर्यटकों को आकर्षित करने का यह काम किसी रणनीति के तहत नहीं हुआ बल्कि अपनी फसल को कीड़ों और जानवरों से बचाने के लिए बरती जाने वाली ग्रामीणों की सावधानी ने सँजी गांव को लोगों की दिलचस्पी से जोड़ दिया हैं। सैंजी गांव के सभी परिवार मक्का की फसल बोते हैं और इनमें से अधिकांश लोग मक्का बेचते हैं।
गांव के हर घर के आगे बड़ी संख्या में भुट्टे के झुंट (गुच्छे) टंगे नजर आते हैं। बेतरतीब नहीं, बल्कि ये बहुत सलीके से इस तरह सजाए जाते हैं, मानो किसी ने अपने घर की सजावट के लिए गहरे पीले रंग के फूलों के गुच्छे बनाकर लगा दिए हों। भुट्टे के सैकड़ों गुच्छों की यह सजावट सैलानियों को मुग्ध कर देती है। गांव के लोग अपने घरों और आसपास सफाई का भी बहुत ध्यान रखते हैं। यह भी पर्यटकों पर किसी जादू जैसा काम करता है। इसे अगर स्थानीय ग्रामीणों के नजरिए से देखें तो ग्रामीण अपनी फसल काटने के बाद उसे इधर उधर डालकर सुखाने के बजाय अपने घर ले आते हैं और घरों के बरामदे, छज्जे आदि पर मक्के के झूट बनाकर टांग देते हैं।
ऐसा करने से उनकी फसल उनकी आंखों के सामने रहती है और उसे पक्षियों और जंगली जानवरों से बचाना आसान होता है। छज्जे, बरामदे आदि में टंगे मुक्के के झूट धीरे-धीरे सूखते रहते हैं और जब वे अच्छी तरह सूख जाते हैं, तब उनके दाने निकालकर आटा तैयार किया जाता है। कुछ लोग आटा बेचते हैं, तो ज्यादातर लोग मक्का बेच देते हैं। इस गांव में सैकड़ों कुंतल मक्का की पैदावार होती है। गांव के लोग बताते हैं कि पहले मक्का बेचना कठिन काम होता था, लेकिन अब फास्टफूड में भी मक्का का इस्तेमाल होने के कारण मक्का की मांग काफी बढ़ गई है। इस गांव के लोग स्वीट कार्न की भी खेती करना चाहते हैं, कुछ लोगों ने कहीं से बीज मंगाकर स्वीट कार्न की फसल भी तैयार की है। इसके लिए उन्होंने कृषि विभाग से मदद का अनुरोध भी घरों को भुट्टों से सजाने की अनोखी रवायत के कारण सैंजी गांव अब कार्न विलेज आफ इंडिया कहलाता है।
पर्वतों की रानी मसूरी से करीब 16 किलोमीटर और कैंपटी फाल से पांच किलोमीटर दूर बसे सैंजी गांव में लगभग 35 परिवारों के करीब 500 लोग रहते हैं। इस गांव से एक बड़ी खासियत यह भी है कि यहां से उत्तराखंड के तमाम दूसरे गांवों की तरह पलायन नहीं हुआ। सँजी गांव के बहुत कम लोग गांव छोड़कर बाहर गए हैं। इस गांव के लोग खेती-बाड़ी के साथ ही पशुपालन से जुड़े हैं। गांव के कुछ लोग पर्यटन उद्योग से भी जुड़े हैं। सँजी का मक्के का आटा सैलानियों को बहुत पसंद आता है। विशेषकर घराट (पनचक्की) में पिसा मक्का का आटा अपनी अलग सुगंध और जायके के लिए जाना जाता है। यहां के लोग मक्का के परंपरागत बीज इस्तेमाल करते हैं। गांव के कार्न विलेज आफ इंडिया बनने की कहानी भी दिलचस्प है। सैंजी गांव को कार्न विलेज आफ इंडिया के रूप में प्रसिद्धि मसूरी के पर्यटन व्यवसायियों ने दी है।