स्वास्थ्य

SRHU: दिल का इलाज होगा सस्ता, एसआरएचयू के डॉ. पुरांधी की खोज को मिला पेटेंट

ऋषिकेश: भविष्य में दिल का इलाज सस्ता हो सकता है। दरअसल, स्वामी राम हिमालयन विश्वविद्यालय (एसआरएचयू) जौलीग्रांट में बायो साइंसेस की सहायक प्रोफेसर डा. पुरांधी रूपमणि ने नई तकनीक के साथ एक ऐसे ‘स्टेंट’ का आविष्कार किया है, जो पहले से सस्ता होगा। वजह है स्टेंट में ‘जेनेरिक दवाइयों’ का इस्तेमाल। डा. पुरांधी के इस आविष्कार को भारत सरकार से पेटेंट मिल गया है।

डा. पुरांधी ने ‘डेवलेपमेंट आफ ड्यूल ड्रग-एल्यूटिंग स्टेंट आफ द ट्रीटमेंट आफ कोरोनरी आर्टरी डिजीज’ के तहत हृदय रोगियों के उपचार में एंजियोप्लास्टी के दौरान होने वाले स्टेंट का आविष्कार किया है। एसआरएचयू के कुलाधिपति डा. विजय धस्माना ने कहा कि विश्वविद्यालय का शोध व अविष्कार के क्षेत्र में गौरवमयी रिकार्ड है। उन्होंने इस आविष्कार के लिए डा. पुरांधी को शुभकामनाएं दीं। साथ ही उम्मीद जताई कि डा. पुरांधी का यह आविष्कार जनस्वास्थ्य के लिए बेहद कल्याणकारी साबित होगा।

डा. धस्माना ने कहा कि एसआरएचयू का फोकस शोध कार्यों पर है। विश्वविद्यालय की अत्याधुनिक प्रयोगशालाओं में कई नए आविष्कारों पर कार्य चल रहा है, जिनके नतीजे जल्द सामने आएंगे।

एक पेटेंट, तीन फायदे

डा. पुरांधी ने बताया कि उनके इस एक पटेंट से हृदय के रोगियों को भविष्य में चार बड़े फायदे मिल सकते हैं। पहला स्टेंट की कीमत में कमी। विदेशी कंपनियां जो ड्रग-एल्यूटिंग स्टेंट बना रही हैं, उनकी कीमत एक से दो लाख रुपये के बीच है, जबकि उनके बनाए स्टेंट में जेनेरिक दवाइयां इस्तेमाल होती हैं। इससे इसकी कीमत बाजार में मौजूद दूसरे स्टेंट की कीमत से आधी हो जाएगी। इससे उपचार के बाद दवाइयों के सेवन में भी कमी आएगी। आमतौर पर एंजियोप्लास्टी के बाद भी रोगियों को जीवनपर्यंत एटोरवैस्टेटिन और फेनोफाइब्रेट दवा का सेवन करना पड़ता है। लेकिन, उन्होंने जिस स्टेंट का अविष्कार किया है, उसकी परत के निर्माण में इन्हीं दवाइयों का उपयोग होता है। लिहाजा, एंजियोप्लास्टी के बाद रोगियों को ना के बराबर दवाइयां लेनी पड़ेंगी। इसी तरह अभी तक जो स्टेंट उपलब्ध हैं, उनकी मोटाई चार माइक्रोन है, जबकि उन्होंने उनके तैयार किए स्टेंट का साइज एक माइक्रोन है।

90 प्रतिशत सफलता दर

डा. पुरांधी ने बताया कि उन्होंने जिस स्टेंट का अविष्कार किया है, उसका अभी ह्यूमन ट्रायल होना शेष है। चूहों पर हुए 28 दिन के परीक्षण में स्टेंट का परिणाम 90 प्रतिशत से ज्यादा सफल रहा। अब वह स्टेंट का बड़े जानवर, जैसे सुअर व खरगोश पर प्री-क्लिनिकल ट्रायल रिसर्च करेंगी।

‘मेक इन इंडिया’ को बनाया मूलमंत्र

डा. पुरांधी ने बताया कि जब वह इस प्रोजेक्ट पर काम कर रही थीं, तब उन्होंने ‘मेक इन इंडिया’ अवधारणा को मूलमंत्र बनाया। उनकी इच्छा थी कि भारत में ही अत्याधुनिक ‘स्टेंट’ बनें, जिनकी कीमत विदेशी स्टेंट से काफी कम होगी और हर जरूरतमंद व्यक्ति को उच्च गुणवत्ता का ‘स्टेंट’ मिल सकेगा।

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