मनोरंजन

National Film Awards 2023: ऋषिकेश की सृष्टि ने 80 साल की लीला और 19 के गोलू पर फ़िल्म बनाकर जीता अवार्ड, कहानी सुन आ जाएगा मजा

देहरादून: कहते हैं, पहाड़ का पानी और पहाड़ की जवानी पहाड़ के काम नहीं आते, लेकिन इस बात को अपने काम के जरिये खारिज करने की भरपूर कोशिश की है उत्तराखंड की बेटी सृष्टि लखेड़ा ने। सृष्टि की फिल्म ‘एक था गांव’ को राष्ट्रीय पुरस्कार के लिए चुना गया है।


69वें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार में ऋषिकेश की बेटी सृष्टि लखेड़ा की निर्देशित फिल्म ‘एक था गांव’ को सर्वश्रेष्ठ गैर-फीचर फिल्म के पुरस्कार के लिए चुना गया है। हम सब उत्तराखंड वासियों के लिए ये गौरव की बात है। सृष्टि लखेड़ा की यह फिल्म गढ़वाली व हिंदी भाषा में बनी है। मूल रूप से टिहरी गढ़वाल के सेमला गांव कीर्तिनगर निवासी सृष्टि लखेड़ा के पिता डा. केएन लखेड़ा ऋषिकेश के जानेमाने बाल रोग विशेषज्ञ हैं। 35 वर्षीय सृष्टि लाखेड़ा की प्राथमिक शिक्षा ऋषिकेश के ओंकारानंद स्कूल से हुई है। सृष्टि ने मिरांडा हाउस नई दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक तथा एवरग्रीन यूनिवर्सिटी ओलंपिया वॉशिंगटन स्टेट से मास्टर की डिग्री हासिल की। एक वर्ष पूर्व उनका विवाह अमिथ सुरेंद्रन से हुआ है। अमिथ सुरेंद्रन प्रसिद्ध सिनेमैटोग्राफर हैं, जो कई चर्चित वेब सीरीज के लिए कम कर चुके हैं। सृष्टि लखेड़ा की मां कुमुद लाखेड़ा ग्रहणी हैं, सृष्टि के बड़े भाई सिद्धार्थ लाखेड़ा दिल्ली में अपना व्यवसाय करते हैं।

एक था गांव में 80 साल की लीला की कहानी

पहाड़ की बेटी सृष्टि ने फिल्म पलायन की ऊहापोह में फंसी दो पीढ़ियों, दो राहों और दो सपनों के इर्द-गिर्द बुनी है। फिल्म के मुख्य किरदार 80 वर्ष की लीला देवी और 19 साल की युवती गोली हैं। दोनों की राहें, सपने और इरादे बिल्कुल जुदा-जुदा हैं। पलायन से खंडहर हो चुके गांवों के सन्नाटे के बीच वे दोनों ही अपने हिस्से के संघर्षों को जीते हैं। परिस्थितियां ऐसी आती हैं कि वे भी पलायन कर जाते हैं। बचती है तो सिर्फ खामोशी, खंडहर और डरावनी कहानी है।

घोस्ट विलेट की पीड़ा बयां करती है फिल्म

पहाड़ के ‘घोस्ट विलेज’ यानि भूतहा हो चुके गांवों की पीड़ा और हकीकत को बयान करती फिल्म करती है ‘एक था गांव’। फिल्म में गांव के चूल्हे, घर-आंगन से लेकर जल-जंगल-जमीन को बहुत ही शानदार तरीके से उकेरा गया है। 80 वर्षीय लीला देवी, 19 वर्षीय युवती गोली और दिनेश भाई के रोजमर्रा के कामों में सहजता से होने वाली बातचीत को गंभीरता के साथ दर्ज किया गया है। फिल्म में लीला देवी अपनों के पलायन करने और उनको बार-बार पलायन के लिए कहने के बावजूद गांव में ही रहना पसंद करती हैं। वहीं गोलू को उजड़ चुका गांव उजाट और निराशा से भरा लगता है। वह शहरों में अपना भविष्य बनाने की जुगत में रहती है। आखिरकार परिस्थिति ऐसी आती है कि दोनों को गांव छोड़ना पड़ता है। लीला देवी अपनी बेटी के पास देहरादून चली जाती है, जबकि गोलू उच्च शिक्षा के लिए ऋषिकेश चली जाती है।

अपने गांव के पलायन पर बनाई फिल्म

अपनी फिल्म के बारे में सृष्टि कहती हैं कि उन्होंने अपने गांव में हुए पलायन पर यह फिल्म बनाई है। हालांकि यह उनके गांव की ही नहीं, बल्कि पूरे पहाड़ की कहानी है, जहां हजारों की संख्या में ऐसे गांव और ऐसे पात्र देखने को मिल जाते हैं। सृष्टि मूलरूप से टिहरी जनपद के कीर्तिनगर विकासखंड के सेमला की रहने वाली हैं। वह अपने परिवार के साथ ऋषिकेश में रहती हैं। विगत एक दशक से वह फिल्म जगत में काम कर रही हैं। मामी फिल्म फेस्टिवल की वेबसाइट पर बताया गया कि कोविड-19 के चलते इस बार आयोजन नहीं हो सका। इसको अक्टूबर 2021 में किया जाना प्रस्तावित है, जिसकी तिथियां इस साल के अंत तक घोषित की जाएंगी। आशा है अपनी समसामयिक विषयवस्तु और दमदार स्टोरी के चलते यह फिल्म अव्वल स्थान हासिल करेगी। इस फिल्म को स्विट्जरलैंड के विज़न्स डू रील फेस्टिवल डॉक्यूमेंट्री फेस्टिवल की मीडिया लाइब्रेरी में भी रखा गया है।

National Film Awards 2023: Srishti Lakheda of Rishikesh won the award by making a film on 80 year old Leela and 19 year old Golu, will enjoy listening to the story

Namaskar Live

सोशल मीडिया के इस दौर में खबरों को लेकर भ्रांतियां पैदा हो रही है। ऐसे में आम पाठक को सही खबरें नहीं मिल पा रही है। उसे हकीकत और तथ्यपूर्ण खबरों से रूबरू कराने के लिए ही मैंने यह पोर्टल बनाया है। संपादक तनुजा जोशी

Related Articles

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Back to top button