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उत्तराखंड में राज्य आंदोलनकारियों को क्षैतिज आरक्षण का मामला फिर हाई कोर्ट में,राज्य सरकार को नोटिस

नैनीताल: हाई कोर्ट ने उत्तराखंड में चिन्हित राज्य आंदोलनकारियों को राजकीय सेवाओं में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण अधिनियम को चुनौती देती याचिका पर राज्य सरकार को नोटिस जारी कर छह सप्ताह में जवाब दाखिल करने के निर्देश दिए हैं।कोर्ट ने पूछा है कि अधिनियम की जरूरत क्यों पड़ी। याचिकाकर्ता के अधिवक्ता को जानकारी के लिए कोर्ट के आदेश की प्रतिलिपि उत्तराखंड राज्य लोक सेवा आयोग को भेजने के निर्देश भी दिए हैं।

गुरुवार को मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति ऋतु बाहरी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ में देहरादून के भुवन सिंह व अन्य की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। जिसमें राज्य सरकार की ओर से हाल ही में राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में दस प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण को असंवैधानिक करार देते हुए निरस्त करने की प्रार्थना की है।

साथ ही अधिनियम के अंतर्गत दिए जा रहे लाभ पर रोक लगाने की मांग की है। कोर्ट ने अधिनियम के क्रियान्वयन पर रोक लगाने से इन्कार करते हुए सरकार व अन्य पक्षकारों को नोटिस जारी कर जवाब दाखिल करने को कहा है।

राज्य सरकार की ओर से 2004 में कार्यालय आदेश जारी कर राज्य आंदोलनकारियों को सरकारी सेवाओं में 10 प्रतिशत क्षैतिज आरक्षण दिया था। इस आदेश के आधार पर सैकड़ों राज्य आंदोलनकारियों को विभिन्न विभागों में नौकरियां दी गई। कार्यालय आदेश के बाद सरकार ने इस संबंध में शासनादेश जारी किया, जिसे हाई कोर्ट में याचिका के माध्यम से चुनौती दी गई।

लंबे समय तक सुनवाई के बाद हाई कोर्ट की खंडपीठ में शामिल न्यायाधीशों ने अलग अलग आदेश पारित किया। एक जज ने आरक्षण को सही ठहराया तो दूसरे ने असंवैधानिक करार दिया था। इसके बाद चीफ जस्टिस ने मामला तीसरे न्यायाधीश को रेफर किया। तीसरे न्यायाधीश ने भी आरक्षण को गलत ठहराया तो इस आरक्षण को असंवैधानिक करार देते हुए रद कर दिया।

इसी साल राज्य सरकार ने राज्य विधानसभा में विधेयक पारित कर अधिनियम बनाया, जिसका 18 अगस्त को नोटिफिकेशन जारी कर दिया। सरकार की ओर से राज्य लोक सेवा आयोग को भी पत्र लिखकर राज्य आंदोलनकारी अभ्यर्थियों को लाभ देने को कहा। जिसे हाई कोर्ट में चुनौती दी गई है। 2004 में आरक्षण का सरकारी आदेश के बाद 2010 में नियमावली भी बनाई।

जिसमें कहा कि आन्दोलनकारियों को बिना किसी चयन प्रक्रिया के नियुक्ति प्रदान की जा सकती है। 2017 में कोर्ट ने इसे कर दिया लेकिन सरकार इस आदेश के बाद सुप्रीम कोर्ट नहीं गई और अधिनियम बना दिया। सुनवाई के दौरान महाधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि सरकार को अधिनियम बनाने का अधिकार है। शपथपत्र के माध्यम से जवाब दाखिल किया जाएगा।

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