देहरादून: परियों की कहानियां बचपन में तो आपने जरूरी पढ़ी और सुनी होगी। कहते हैं परियां बहुत ही सुंदर होती हैं और जिन पर मेहरबान हो जाएं उसे मालामाल बना देती हैं। इंसानों से इनके प्रेम के किस्से भी पहड़ों पर सुनाए जाते हैं। तो किस्सों की दुनिया से आगे निकलते हुए एक ऐसी जगह की ओर चलते हैं जहां आज भी लोग परियों और वनदेवियों को देखने का दावा करते हैं। परियों का यह देश उत्तराखंड में स्थित है. जहां के खैट पर्वत को परियों का देश कहा जाता है. यह पर्वत टिहरी गढ़वाल में स्थित है और इसके बारे में उत्तराखंड में कई किंवदंतियां और कहानियां फैली हुई हैं। क्या है भारत के इस खैट पर्वत का रहस्य, जिसे कहा जाता है परियों का देश… जानिए वहां ऐसा क्या है
परियों की कहानी आपने बचपन में अपने दादी नानी से खूब सुनी होगी। किताबों में भी पढ़ी होगी। उस वक्त हमें यह सब कुछ सच भी लगता था. लेकिन जैसे जैसे हम बड़े होने लगे और हमारी समझ बढ़ने लगी तो हमें लगा कि यह सब कुछ काल्पनिक है. लेकिन क्या यह सही में काल्पनिक है? दुनिया में कई रहस्य छुपे हैं, जरूरी नहीं है कि जिन्हें हम काल्पनिक समझ रहे हो वह वाकई में मिथ्या ही हो। दरअसल इंसान की प्रवृत्ति है कि जब तक उसे किसी बात पर कोई ठोस सबूत नहीं मिलता वह उसे झूठ ही समझता है. इसलिए आज हम आपको बताते हैं भारत के उस जगह के बारे में जिसे परियों का देश कहा जाता है।
कहां है परियों का देश
परियों का यह देश उत्तराखंड में स्थित है। जहां के खैट पर्वत को परियों का देश कहा जाता है। यह पर्वत टिहरी गढ़वाल में स्थित है और इसके बारे में उत्तराखंड में कई किंवदंतियां और कहानियां फैली हुई हैं। वहां के लोकल गढ़वाली भाषा में कहा जाता है कि इस पर्वत पर आंछरी निवास करती हैं। दरअसल, परियों को गढ़वाली भाषा में आंछरी ही कहा जाता है।
गांव की रक्षा करती है परियां
इस पर्वत के सबसे नजदीक है थात गांव। यहां के लोगों का मानना है कि उनके गांव की रक्षा हजारों सालों से परियां कर दिया रही हैं। कुछ लोग तो यह भी दावा करते हैं कि उन्हें खैट पर्वत पर कई बार परियों के दर्शन भी हुए हैं। हालांकि, आज तक इस पर कोई ठोस सबूत नहीं मिल पाया है।
सुंदरता से भरपूर है यह पर्वत
जाहिर सी बात है जिस क्षेत्र को परियों का देश कहा जाता है वह देखने में तो बेहद सुंदर और समृद्ध होगा ही. खैट पर्वत बिल्कुल वैसा ही है। यहां चारों तरफ हरियाली साल भर रहती है, यहां के पेड़ों पर फल फूल हमेशा लगे रहते हैं। हालांकि, अगर आप यहां से कोई पौधा बाहर लेकर जाएं और सोचें कि इसे वहां लगा दें तो कुछ ही दिनों में यह सूख जाएगा. कहते हैं कि इस पर्वत पर अखरोट और लहसुन की खेती अपने आप हो जाती है। यानी कोई इनके पेड़ नहीं लगाता है, लेकिन इनके पौधे अपने आप ही उग जाते हैं।