नैनीताल: हाई कोर्ट ने उत्तराखंड में लोकायुक्त की नियुक्ति की मांग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पूर्व के आदेश में संशोधन कर दिया है।
कोर्ट ने लोकायुक्त कार्यालय में कार्यरत कर्मचारियों का पिछले चार माह से रुका हुआ वेतन जारी करने के आदेश दिए हैं। कोर्ट ने यह भी कहा है कि कार्यालय की देखरेख ,बिल व अन्य पर होने वाले खर्च को अगले वित्तीय वर्ष तक कर सकते हैं।
सुनवाई के दौरान सरकार की तरफ से कोर्ट में पूर्व के आदेश में संशोधन को लेकर प्रार्थनापत्र प्रस्तुत किया गया, जिसमें कहा गया कि कोर्ट के आदेश के बाद लोकायुक्त कार्यालय में कार्यरत नियमित कर्मचारियों को पिछले चार माह से वेतन नहीं मिला है जबकि अभी त्यौहार का समय है। यही नही कोर्ट के आदेश के बाद कार्यालय के समस्त बिल लंबित पड़े है और कार्यालय को शिफ्ट भी होना ह, इसलिए वित्तीय खर्च पर लगी रोक को हटाया जाय।
जिस पर कोर्ट ने सरकार को थोड़ी राहत देते हुए उनके वेतन जारी करने के आदेश दिए हैं। सुनवाई पर कोर्ट ने पूछा कि अभी तक लोकायुक्त की नियुक्ति क्यों नही हुई। जिसपर मुख्य स्थायी अधिवक्ता सीएस रावत ने कहा कि लोकायुक्त की नियुक्ति की प्रक्रिया गतिमान है।
पूर्व में कोर्ट ने राज्य सरकार को लोकायुक्त की नियुक्ति करने हेतु तीन माह का अंतिम अवसर देते हुए यह भी कहा है कि जबतक लोकायुक्त की नियुक्ति नही हो जाती उसके कार्यालय के कर्मचारियों को वहां से वेतन नहीं दिया जाय। चाहे तो सरकार अन्य विभाग से कार्य लेकर उन्हें भुगतान कर सकती है।
मंगलवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति मनोज कुमार तिवारी व न्यायमूर्ति राकेश थपलियाल की खंडपीठ में हल्द्वानी गौलापार निवासी रविशंकर जोशी की जनहित याचिका पर सुनवाई हुई। जिसमें कहा गया है कि राज्य सरकार ने अभी तक लोकायुक्त की नियुक्ति नही की जबकि संस्थान के नाम पर सालाना दो से तीन करोड़ खर्च हो रहा है। याचिकाकर्ता के अनुसार कर्नाटक में व मध्य प्रदेश में लोकायुक्त की ओर से भ्रष्टाचार के विरुद्ध कड़ी कार्यवाही की जा रही है लेकिन उत्तराखंड में तमाम घोटाले हो रहे हैं। हर एक छोटे से छोटा मामला हाई कोर्ट के समक्ष लाना पड़ रहा है। यह भी कहा गया है कि वर्तमान में राज्य की सभी जांच एजेंसी सरकार के अधीन है, जिसका पूरा नियंत्रण राज्य के राजनैतिक नेतृत्व के हाथों में है।
वर्तमान में उत्तराखंड राज्य में कोई भी ऐसी जांच एजेंसी नही है “जिसके पास यह अधिकार हो कि वह बिना शासन की पूर्वानुमति के, किसी भी राजपत्रित अधिकारियों के विरुद्ध भ्रष्टाचार का मुकदमा पंजीकृत कर सके। स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच के नाम पर प्रचारित किया जाने वाला सतर्कता विभाग भी राज्य पुलिस का ही हिस्सा है, जिसका पूरा नियंत्रण पुलिस मुख्यालय, सतर्कता विभाग या मुख्यमंत्री कार्यालय के पास ही रहता है। एक पूरी तरह से पारदर्शी, स्वतंत्र और निष्पक्ष जांच व्यवस्था राज्य के नागरिकों के लिए कितनी महत्वपूर्ण है, इसलिए रिक्त पड़े लोकायुक्त की नियुक्ति शीघ्र की जाय।